पंजाब कृषि विश्वविद्यालय फ़सल के अवशेष को तेज़ी से खेतों में गला देने की तकनीक का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करेगी

21 November, 2019, 11:12 pm

चंडीगढ़, 21 नवंबर:अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास विश्वजीत खन्ना ने आज पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना को धान की पराली को तेज़ी से खेतों में गला देने की प्रौद्यौगिकी का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने के लिए कहा जिससे पराली जलाने के रुझान को प्रभावशाली ढंग से रोकने के लिए परखी हुई और टिकाऊ विधि को विकसित करने में प्राईवेट कंपनियों को भी शामिल किया जा सके।
आज यहाँ मोहाली जिले में न्यू चण्डीगढ़ के पास के गाँव माजरा के खेतों में पराली को खेतों में गलाने की विधि की नुमायशी परख का निरीक्षण करते हुए विसवाजीत खन्ना ने फ़सल के अवशेष का कारगर ढंग से निपटारा करने के लिए वैज्ञानिक तर्ज पर अति आधुनिक प्रौद्यौगिकी विकसित करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। उन्होंने कृषि कमिश्नर को पी.ए.यू. के साथ तालमेल करने के लिए कहा जिससे राज्य के किसानों की तसल्ली अनुसार नई पहुँच वाली प्रौद्यौगिकी के द्वारा इस समस्या का ठोस हल निकाला जा सके। उन्होंने पराली जलाने की चुनौती के साथ निपटने के लिए ठोस प्रौद्यौगिकी विकसित करने सम्बन्धी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह की गंभीरता का ख्ुालासा करते हुए कहा कि इस पर किसान कमीशन के चेयरमैन द्वारा गंभीरता के साथ तालमेल और निरीक्षण किया जा रहा है।
पराली को खेतों में कम समय में ही गला देने की प्रौद्यौगिकी के संदर्भ में श्री खन्ना ने पी.ए.यू. के खेती माहिरों को इस सम्बन्ध में कोई भी फ़ैसला लेने से पहले इस विधि के नफ़ा-नुक्सान को बारीकी के साथ जाँचने के लिए कहा। उन्होंने पी.ए.यू अथॉरिटी को इस विधि की परख अपने नुमायशी फार्मों में भी करने के लिए कहा जिससे इस ऑर्गेनिक प्रौद्यौगिकी की सफलता का मुल्यांकन किया जा सके। उन्होंने यूनिवर्सिटी को अपनी सिफारशों से सम्बन्धित रिपोर्ट जल्द से जल्द सौंपने को कहा।
वातावरण प्रदूषण की रोकथाम के लिए नवीन प्रौद्यौगिकी विकसित करने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए अतिरिक्त मुख्य सचिव ने कहा कि खेतों में ही पराली खपाने के लिए उभर रही तकनीकें पराली जलाने की समस्या के हल के लिए सहायक सिद्ध हो सकतीं हैं जिससे हमारे राज्य को हरा भरा और प्रदूषण मुक्त बनाकर नागरिकों के लिए स्वस्थ वातावरण को यकीनी बनाया जा सके।
नुमाईश के दौरान यह जानकारी दी गई कि अपनी किस्म की यह पहली ऑर्गेनिक विधि है जिससे पराली को काटने और बाहर ले जाए बिना दो हफ़्तों में धान की पराली को गला देती है। यह भी बताया गया कि खेत में गल चुकी पराली को आसानी से ही मिट्टी में मिलाया जा सकता है जिससे आगली फ़सल के लिए खाद की 35 प्रतिशत कम ज़रूरत पड़ेगी। मिट्टी में पराली को मिलाने से या पूरी तरह खपा देने से आगली फ़सल के दौरान घास पात की पैदावार भी घटेगी और इसके अलावा किसानों की आमदन बढऩे के साथ-साथ और लाभ भी मिलेंगे।
इस मौके पर अतिरिक्त मुख्य सचिव के साथ कृषि कमिश्नर बलविन्दर सिंह सिद्धू, कृषि डायरैक्टर डा. सुतंतर कुमार ऐरी के अलावा कई किसान भी उपस्थित थे।
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