इंफाल-जापानी साम्राज्य की आखिऱी लड़ाई’ विषय पर सैशन के दौरान दूसरी विश्व जंग के कई अछूते पहलू उभारे गए

15 December, 2019, 12:37 am

चंडीगढ़, 14 दिसंबर:मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन यहाँ शनिवार को ‘इंफाल- जापानी साम्राज्य की आखिऱी लड़ाई’ विषय पर करवाए गए बातचीत सैशन के दौरान भारत की धरती पर लड़ी गई दूसरी विश्व जंग के कई अछूतेे पहलूओं को उभारा गया। सैशन का संचालन मेजर जनरल ए.पी. सिंह ने किया और इस सैशन में कर्नल (सेवामुक्त) डा. राबर्ट लीमन, ब्रिगेडियर (सेवामुक्त) एलन मैलिनसन, अब्राहम अगंमबा सिंह और पुष्पििन्दर सिंह उपस्थित थे। मेजर जनरल ए.पी. सिंह ने भारत पर जापानी हमले के कई रणनीतिक कारणों संबंधी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जापान इस हमले से ‘एक तीर के साथ दो निशाने लगाना चाहता था’। वास्तव में जापानियों का उद्देश्य बर्मा में ब्रिटिश फौजों को हराना और चीन को बाँटना था। जापानी फौजों का उद्देश्य इंफाल पर कब्ज़ा करना था। उन्होंने कहा कि इस जंग ने बर्मा की लड़ाई की दिशा बदल दी। 

कर्नल (सेवा मुक्त) डा राबर्ट लीमन ने कहा कि इंफाल की लड़ाई मार्च से जुलाई 1944 तक इंफाल शहर के आसपास के क्षेत्र में लड़ी गई थी। मार्च 1943 में बर्मा में जापानी कमांड का पुनर्गठन कर दिया गया और लेफ्टिनेंट जनरल मसाकाज़ू कावाबे के अधीन एक नया हैडक्वाटर, बर्मा एरिया आर्मी बनाया गया था। लेफ्टिनेंट जनरल मुतागुची को 15वीं सेना की कमांड के लिए नियुक्त किया गया था। जापानी फौजों ने भारत पर हमला किया, परन्तु उनका भारी नुकसान हुआ और वापस बर्मा भेज दिया गया। बहुत से जापानी सैनिकों की मौत उनकी वापसी के दौरान भुखमरी, बीमारी और थकावट के कारण हुई। 

ब्रिगेडियर (सेवामुक्त) एलन मैलिनसन ने ब्रिटिश और भारत के बीच की मिलिट्री विरासत में विलक्षण हिस्सेदारी संबंधी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 1944 में, भारतीय फ़ौज ने जापानियों को भारत में आगे बढऩे से रोक कर फ़ौजी इतिहास का एक अध्याय सुनहरी अक्षरों में लिखा। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई विलक्षण थी क्योंकि दोनों तरफ़ भारतीय सैनिक लड़ रहे थे। इंडियन नेशनल आर्मी का उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था और इसने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान के साथ गठजोड़ करके इस (जापान) की दक्षिण -पूर्वी एशियन थियेटर वाली मुहिम में सहायता की थी।

इंफाल की लड़ाई में हवाई सेना के निर्णायक योगदान की तरफ इशारा करते हुये पुष्पिन्दर सिंह ने कहा कि हवाई सेना की सहायता से बिना इंफाल की लड़ाई जितना बहुत मुश्किल होता। बेशक, रॉयल एयर फोर्स और भारतीय हवाई सेना के योगदान से बिना लड़ाई का नतीजा बहुत अलग हो सकता था। उन्होंने आगे कहा कि 1944 में ‘अराकन’ मुहिम के दौरान जापान के विरुद्ध एक सकुऐडरन का नेतृत्व करने वाले फ़ौजी इतिहास के प्रमुख शूरवीर एयर फोर्स के मार्शल अर्जन सिंह ने महत्वपूर्ण इंफाल मुहिम के दौरान नजदीक के हवाई सहायता मिशन को अंजाम दिया था और अलॉयड फोर्सिज़ को यैगून की तरफ आगे बढऩे में सहायता की थी। उसके इस कारनामे के सम्मान में उसको दक्षिणी पूर्वी एशिया के सुप्रीम अलॉयड कमांडर द्वारा मौके पर ही डिस्टिंगूइशड फ्लाइंग क्रास (डीएफसी) से सम्मानित किया गया था।

इस विचार-विमर्श के दौरान अरंमबम अगम्बा सिंह ने आम साम्राज्ञी जापानी सैनिकों के लडऩे की तकनीकों और संगठित ढांचे संबंधी जानकारी सांझी की। उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्ञी ताकतों के विरुद्ध जापानी सेना के यू गौ अफैंसिव या ऑपरेशन सी पर भी प्रकाश डाला।