मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल के मौके पर शेर बच्चा ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह की अनसुनी गाथा पर लिखी किताब ‘द पी.ओ.डब्ल्यू. हू सेवड कश्मीर’ जारी
चंडीगढ़, 14 दिसंबर:आज यहाँ मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन ब्रिगेडियर जसबीर सिंह द्वारा शेर बच्चा ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह की अनसुनी गाथा पर लिखी किताब ‘द पी.ओ.डब्ल्यू. हू सेवड कश्मीर’ सम्बन्धी पैनल चर्चा की गई। इस मौके पर किताब की पहली कॉपी लेखक को भेंट की गई।
पैनल चर्चा के दौरान प्रीतम सिंह की बहादुरी और उनका बनता मान-सम्मान देने के अलावा विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई। पैनेलिस्टों में किताब के लेखक ब्रिगेडियर जसबीर सिंह, संपादक और सह-लेखक पंकज पी सिंह और ‘इंडियन मिलिट्री रिव्यू’ के सी.ई.ओ. चीफ़ एडीटर मेजर जनरल रवि अरोड़ा शामिल थे।
पैनेलिस्टों ने महसूस किया कि ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह के योगदान को मान्यता दिए जाने की ज़रूरत है।
ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह की शूरवीरता की गाथा, जिसने पुंछ को बचाया था। उन्होंने यह उपाधी तब हासिल की जब 22 नवंबर,1947 से 21 नवंबर,1948 तक एक साल के लिए शहर को पाकिस्तानी फ़ौज ने घेर लिया था। वास्तव में मुसीबत की शुरुआत नयी तय की गई सीमा के पार से आए तकरीबन 40,000 शरणार्थियों के आने से हुई जिसने शहर की आबादी को बढ़ाकर तकरीबन 50,000 तक पहुँचा दिया। भोजन और गर्म कपड़े की कमी और दुश्मन के दरवाज़े खटकाने के कारण लोगों को असंख्य दुखों का सामना करना पड़ा। इस समय ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह, पुंछ का मुक्तिदाता बन कर उभरा और शहर के बुज़ुर्गों ने घेराबन्दी के दौरान उसकी दिलेराना नेतृत्व के लिए उसको वहाँ के लोगों द्वारा ‘शेर बच्चा’ कह कर सम्मान किया था।
इस पुस्तक में दर्ज एक साल तक चली घेराबन्दी को पहचान की ज़रूरत है कि वास्तव में वह क्या थी। शायद यह याद रखना काफ़ी है कि अगर प्रीतम सिंह ने ऐसा न किया होता तो सिफऱ् पुंछ की नहीं, श्रीनगर की किस्मत भी सौ गुणा बदतर होनी थी। उन्होंने कहा कि यह ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह और उसकी बटालियन की बहादुरी स्वरूप संभव हो सका जिसने पुंछ को बचाया था। परन्तु कुछ समय बाद ही पुंछ के इस मुक्तिदाता की कहानी ने एक नया मोड़ लिया। अपने निजी लाभ सिद्ध करने वालों द्वारा ब्रिगेडियर प्रीतम को कुछ झूठे इल्ज़ाम लगा कर कोर्ट मार्शल कर दिया गया।
पैनेलिस्टों ने कहा कि लगभग सात दशकों बाद अब भी, इतिहास की इस गंभीर बेइन्साफ़ी को जाँचने और दृढ़ होकर अपना फज़ऱ् निभाने वाले एक बहादुर पुत्र के मान-सम्मान को फिर बहाल करने का समय आ गया है।