सुखबीर बादल डेरा मुखी से अपने रिस्तों संबंधी पंथ के सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करें - सुनील जाखड़

चंडीगढ़ 19 जुलाई पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष श्री सुनील जाखड़ ने आज अकाली सरकार के समय श्री सुखबीर सिंह बादल के उपमुख्यमंत्री व प्रदेश के गृहमंत्री रहते डेरा मुखी संबंधी अदालतों में दिए हलफनामे मीडिया के सामने पेश करते हुए कहा कि श्री बादल को डेरा के साथ किए गुप्त समझौता के बाद यू टर्न लेने संबंधी अपनी स्थिति पंथ के सामने स्पष्ट करनी चाहिए । उन्होंने कहा कि अगर 2007 में ही डेरा मुखी द्वारा श्री गुरु गोविंद सिंह जी जैसी पोशाक पहनने के मामले में कानूनी कार्रवाई अकाली सरकार द्वारा कर दी गई होती तो इसके बाद श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं नहीं होनी थी और न ही वह बहबल कलां जैसे गोली कांड होने थे और ना ही समाज में बंटवारा होना था ।
इस अवसर पर उनके साथ कैबिनेट मंत्री श्री सुखजिंदर सिंह रंधावा, विधायक श्री वीरेंद्र मीत सिंह पहाड़ा व श्री कुलबीर सिंह जीरा एवं पंजाब कांग्रेस के प्रवक्ता श्री दलजीत सिंह गिलजीया आदि उपस्थित थे।
श्री जाखड़ ने यहां बताया कि सुखबीर सिंह बादल ने वोट के लालच में बार-बार पंथ की पीठ में छुरा मारकर डेरा मुखी से अपनी दोस्ती निभाई है। उन्होंने कहा कि अब तो डेरे के पैरोंकारों ने बकायदा प्रेसवार्ता करके सार्वजनिक तौर पर इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है कि उन्होंने अकाली दल के हक में मतदान किया है ।
डेरे से जुड़ी घटनाओं को तरतीब बार मीडिया के सामने रखते हुए श्री सुनील जाखड़ ने कहा कि 2007 में 11 से 13 मई तक डेरा मुखी पंजाब में सलाबत पुरा आया था। उसने यहां गुरु गोविंद सिंह जैसी पोशाक पहनकर जाम ए इसां पिलाने का संवाग किया था। उसने इस संबधि पंजाब के सभी प्रमुख समाचार पत्रों में बड़े-बड़े विज्ञापन देकर भी इसकी घोषणा की थी।
इस घटना के बाद पटियाला के आईजी की जांच के बाद अकाली दल की सरकार के समय उसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज की गई और यह एफआइआर राज्यपाल पंजाब की अनुमति के साथ हुई। उस समय पर्चा रद्द करवाने व चालान को कोर्ट में पेश करने से रोकने के लिए डेरा मुखी द्वारा की गई कार्रवाई के दौरान अकाली दल की सरकार जिसमें सुखबीर सिंह बादल गृहमंत्री व उप मुख्यमंत्री थे ने दो बार हलफनामे दायर करके डेरा मुखी पर भावनाएं भड़काने व अपने चेलों को यह हिदायत देने के डेरा मुखी के निदकों को अगर मारना भी पड़े तो मार दिया जाए, जैसे आरोप लगाए थे।
श्री जाखड़ ने कहा कि इस दौरान 2008 में उच्च न्यायालय ने द्वारा चालान पेश करने की सरकार को आज्ञा दे दिए जाने के बावजूद 4 साल तक अकाली सरकार ने चालान कोर्ट में पेश नहीं किया क्योंकि 2008 में लोकसभा व विधानसभा के क्षेत्रों की हुई हदबंदी के बाद बठिंडा को आरक्षित लोकसभा क्षेत्र से बदलकर सामान्य क्षेत्र कर दिया गया था ।अब क्यों के बादल परिवार ने यहां से 2009 के लोकसभा चुनाव लड़ने थे इसलिए डेरे से यहां सौदेबाजी शुरू हुई 2009 में लोकसभा चुनावों में डेरे द्वारा अकाली दल की मदद के बाद डेरा मुखी ने जान लिया था कि सुखबीर सिंह बादल से वोट का लालच देकर कुछ भी करवाया जा सकता है। इसलिए उसके दबाव में 2012 के विधानसभा चुनावों से 3 दिन पहले सरकार ने यू-टर्न लेते हुए नया हलफनामा दायर कर दिया कि 13 मई 2007 को न तो डेरा मुखी सला बत पूरे आया था ना ही उसने वहां कोई प्रचार किया। उन्होंने कहा कि यह सारा कुछ पंथक सरकार के राज्य में हुआ।
फिर 2012 की विधानसभा चुनाव में इस सौदेबाजी द्वारा वोट लेने के बाद डेरा मुखी ने भी अकाली दल की के अध्यक्ष की कमजोरी पता लग गई ।फिर उसने 2015 में अपनी नोटों की कमाई करने वाली फिल्म रिलीज करवानी थी तो फिर 2007 की तरह ही भावनाएं भड़काने का ऐंजडा लागू किया गया । इस समय दौरान डेरे को सुखबीर सिंह बादल के इशारे पर माफी दी गई व फिल्म चलाई गई जबकि उसी समय के दौरान श्री गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी की घटनाएं हुई और पंथक सरकार के राज में बहबल कला गोली कांड हुआ । प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि अगर 2007 में ही डेरा मुखी पर कार्रवाई कर दी जाती तो पंथ का इतना बड़ा नुकसान नहीं होना था।