#Satyabahumat राजनीतिक गठबंधन की भ्रष्ट राजनीति को बदलना होगा : सत्य देव चौधरी

4 September, 2020, 9:19 pm

देश की मौजूदा प्रजातंत्र प्रणाली ने भ्रष्टाचार की राजनीति को बढ़ावा दिया हैं । गठबंधन की भ्रष्ट राजनीति का मकसद महज सत्ता हासिल करना हैं ।   देश में सच्चे लोकतंत्र को स्थापित करने की अलख जगाई हैं श्री सत्यदेव चौधरी ने "सत्य बहुमत पार्टी" बनाकर देश को एक सच्चा  बहुमत   देने का प्रयास हैं । लोकसभा 2019 और दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े किये । सत्य बहुमत पार्टी बिहार विधानसभा चुनावों में भ्रष्ट गठबंधन की राजनीति को हराने के लिए राज्य की 243 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतार रही हैं । पार्टी की रणनीति, विचार और सत्य बहुमत की राजनीति को लेकर हमारे संवाददाता ने सत्य बहुमत पार्टी के संस्थापक श्री सत्यदेव चौधरी से बातचीत की हैं ।

प्रश्न - देश की आजादी के बाद भी हम गरीबी भ्रष्टाचार ,अपराध को नही मिटा पाए ? विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र क्या लोगों की उम्मीदों पर खरा नही उतरा हैं । 

देखिए, हमने  देश की  आजादी के बाद में जो  राजनीतिक व्यवस्था बनाई हैं ।   इस  व्यवस्था की परिभाषा क्या  हैं ?  बहुमत किसे कहते हैं? इसकी व्याख्या हमारे संविधान में भी नही हैं ।,प्रजातंत्र बोल के ना जाने कौन सी राजनीतिक व्यवस्था को हमने स्वीकार कर  लिया। इस व्यवस्था में  सिर्फ गठबंधन की भ्रष्ट राजनीति के अलावा कुछ नहीं है।  मैं समझता हूं कि हमने आजादी लेने के बाद में  एक अच्छी राजनीतिक प्रजातांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था को हमने स्वीकार नहीं किया। बल्कि प्रजातंत्र के नाम पर एक झूठा ढकोसला करके गठबंधन की भ्रष्ट राजनीति  देश के गरीबों के ऊपर थोप दी और इसी  वजह से हम अभी तक गरीबी, बीमारी, बेरोजगारी से नहीं निकल पाए। भ्रष्ट राजनीति, भ्रष्ट गठबंधन यह हमारी राजनीति का  कीचड़  है । इसमें बदलाव कैसे आए , ये   बहुमत की कोई व्याख्या नहीं है। बहुमत कोई परिभाषित नहीं है। आप बहुमत किसको मानेंगे ?पहले सबसे बड़ी चुनौती हैं । धनबल , बाहुबल से  चुनाव जीतते हैं  ।आप चुनाव करवाते क्यों हैं? इसलिए  ना कि हम  एक बहुमत का निर्णय कर पाए और प्रजातंत्र के अंदर तो देखिए बहुमत का निर्णय होना चाहिए मतदाताओं के बहुमत से अब मतदाताओं के बहुमत से चुनाव हो जाने के बाद मतदाताओं का तो कोई महत्व है ही नहीं वह तो  सब समाप्त हो जाता हैं  तो जब तक आप इस बहुमत की परिभाषा नहीं बनाएंगे और मैं तो समझता हूं कि चुनाव हो जाने के पश्चात जब आप बहुमत विधायकों और सांसदों को मानते हो । सत्य बहुमत पार्टी का मानना हैं  जिस राजनीतिक दल को सबसे ज्यादा वोट मिले उसे सरकार बनानी चाहिए   । , गठबंधन को राजनीति को नकारना होगा  और आप जब तक इसको नहीं करेंगे  तो 70 साल बीत गए और 170 साल के बाद भी  इन समस्याओं का कोई समाधान नही  होगा । 

आपके लिए सही मायने में सत्य बहुमत क्या हैं ?

  कभी कोई  दबंगी आ जाएगा लेकिन आपके पास  कोई समस्या का समाधान लेकर नहीं आएगा। झूठे प्रजातंत्र का  नाटक करके आप को मूर्ख बनाते रहेंगे। अपना खोटा सिक्का चलाते रहेंगे। इसलिए मैं कहता हूं कि आप इस बहुमत की परिभाषा को स्पष्ट कीजिए, जो आज तक स्पष्ट नहीं है और उसका स्पष्टीकरण दो लाइनों में यही है कि आज जो हम चुनाव  के बाद में सांसदों या विधायकों के बहुमत से जो सरकार बनाते हैं । उसके बहुमत से सरकार ना बना कर उस राजनीतिक दल का बहुमत मानिए जिस राजनीतिक दल के पास पूरे देश में या उस राज्य के अंदर सबसे अधिक अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में अधिक वोट हो आप उसका बहुमत मानिए हम इसी को सत्य बहुमत बोलते हैं। और यह सत्य बहुमत आ जाने के बाद ही आपकी सभी समस्याओं का समाधान होगा वरना नहीं होगा । 

मौजूदा तंत्र से एक आम मतदाता आम आदमी इतना दुखी हैं कि वह वोट देने नहीं जाता आपने भी अपने मताधिकार का इस्तेमाल नहीं करते ।  नोटा की प्रासंगिकता को कैसे देखते हैं ।

 नोटा की  अभी कोई ऐसी प्रासंगिकता प्रजातंत्र के अंदर मुझे लगी नहीं , सिवाय  अपना एक विरोध एक रोष  प्रकट करने के सिवाय और कुछ नहीं है। क्योंकि नोटा को तो देखिए नोटा का जो वोटर है उन्होंने भी ऐसा कोई संगठन नहीं बनाया।जीतने वाला प्रत्याशी भी  नोटा वालों से नही बात करता कि आपने नोटा को वोट क्यों दिया।     दुर्भाग्य देखिए जो उम्मीदवार हार गया वह भी नोटा वालों के  पास जाकर बात नहीं करता। नोटा का जो भी एक प्रावधान आया हैं । हमारी न्यायपालिका ,  चुनाव आयोग और न ही सरकार ने  किसी प्रकार भी आपने नोटा वालों को कोई महत्व नहीं दिया, सिर्फ खानापूर्ति करके छोड़ दिया,  आज के दिन करीब-करीब दो फ़ीसदी लोग नोटा को वोट देते हैं और इसकी संख्या   बढ़ जाएगी आने वाले समय में क्योंकि आपकी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा है। इसलिए लोग नोटा को वोट देते हैं तो नोटा को वोट देने का तो देखिए या तो नोटा को वोट देने वाले इस पर विचार करें कि हमने नोटा को वोट क्यों दिया और एक अच्छे सुधार की तरफ जाएं या जिन्होंने नोटा के प्रावधानों को बनाया चाहे वह मुख्य चुनाव आयोग हैं या मुख्य न्यायाधीश हैं या सरकार के जो भी इससे जुड़े हुए विभाग है वह इसके ऊपर चिंतन करें, पूछताछ करें, छानबीन करें कि हमने नोटा क्यों बनाया है? किस लिए बनाया है? नोटा बनाने का कोई महत्व ही नहीं है।  

सत्य बहुमत पार्टी का रोड़ मैप क्या हैं । वाकई सत्य बहुमत स्थापित हो , लोगो का बहुमत स्थापित हो ।

सत्य बहुमत पार्टी का सिर्फ और सिर्फ उद्देश्य यहीं हैं कि मतदाताओं के बहुमत से सरकार बने । मैं आपको एक बहुत सीधा-सीधा उदाहरण दे देता हूं । कि आपकी संसद में 543 सांसदों का चुनाव होता हैं , सरकार बनाने के लिए । व्यवस्था तो एक सरकारी व्यवस्था हैं ना आप किसी भी व्यवस्था को बनाने के लिए सरकार का चुनाव करेगे । सरकार बनाने की व्यवस्था को ही व्यवस्था बोलते होगे ना ,अब 543 सांसदों के चुनाव के अंदर मैं आपको बहुमत की परिभाषा का स्पष्टीकरण करने का प्रयास करूंगा कि 45 लाख वोट लेकर 300 सांसद जीत गए । आज की व्यवस्था कहती हैं कि जिसके पास 272 सांसदों का समर्थन होगा वह सरकार बनाएगी । मैं तो ये कहता हूं कि 300 सांसद 45 लाख वोट लेकर जीते और सरकार बना ली । अब दूसरे 243 सांसद बचे उनके पास 55 लाख वोट हैं वो सरकार नही बना पाए । अब एक साधारण से साधारण मतदाता भी समझ सकता हैं कि हमारे बहुमत की परिभाषा क्या होनी चाहिए। बहुमत की परिभाषा अधिक सांसदों की होनी चाहिए या अधिक वोटों की होनी चाहिए । जैसे 300 सांसदों के पास 45 लाख वोट हैं तो इनका बहुमत होना चाहिए या 243 सदस्यों के पास 55 लाख वोट हैं इनका बहुमत होना चाहिए। सत्य बहुमत पार्टी स्पष्ट रूप से ये कहती हैं कि जो दूसरी पार्टी जिनके 243 सांसद हैं और जिनके पास वोट अधिक हैं 45 लाख से 55 लाख वोट ज्यादा भले ही उनके सांसद कम हैं । हम उनको बहुमत मानेगे । उस बहुमत से उनको सरकार बनाने का अधिकार देगे ।