कोरोना: मनमोहन ने मोदी को लिखा पत्र

एक वर्ष से भी अधिक समय से समस्त विश्व और भारत कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है। बहुत से माता-पिता ने अलग-अलग शहरों में रह रहे अपने बच्चों को एक साल से नहीं देखा है। दादा-दादी ने अपने पोते-पोतियों को नहीं देखा है। अध्यापकों ने कक्षा में बच्चों को नहीं देखा है। इस दौरान अनेक लोगों ने अपनी आजीविका के साधन खो दिए और लाखों लोगों को गरीबी में धकेल दिया गया। इस महामारी की दूसरी लहर, जो आज हम देख रहे हैं, उसके पश्चात लोग आश्चर्यचकित हैं कि उनका जीवन कब सामान्य होगा।
इस महामारी से लड़ने के लिए हमें अनेक कार्य करने होंगे, परंतु टीकाकरण कार्यक्रम को गति देना इस प्रयास का बृहत अंग होगा। इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव हैं। इन सुझावों को देते हुए, मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूँ कि ये सुझाव मैं रचनात्मक सहयोग की भावना के साथ आपके विचारार्थ भेज रहा हूँ, जिस पर मेरा सदैव विश्वास रहा है और जिसका मैंने सदा अनुसरण किया है।
सर्वप्रथम, सरकार को ये बताना चाहिए कि विभिन्न टीका उत्पादकों को टीके की खुराक की आपूर्ति के लिए कितने संपुष्ट आदेश जारी किए गए हैं, जिन्हें अगले 6 महीने में आपूर्ति के लिए स्वीकार कर लिया गया है। यदि हम इस अवधि के दौरान लक्षित संख्या का टीकाकरण करना चाहते हैं तो हमें पहले से ही पर्याप्त टीका खुराकों के लिए ऑर्डर देना चाहिए ताकि उत्पादक आपूर्ति के लिए एक निर्धारित समयावधि का अनुपालन कर सकें।
दूसरे, सरकार को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि पारदर्शी फार्मूले के आधार पर राज्यों को यह अपेक्षित आपूर्ति कैसे की जाएगी। केंद्र सरकार आपातकालीन जरूरतों के आधार पर वितरण के लिए 10 प्रतिशत टीके की खुराक अपने पास रख सकती है, लेकिन इसके अतिरिक्त, संभावित टीकों की उपलब्धता का एक स्पष्ट संदेश राज्यो को होना चाहिए ताकि वे उसके अनुसार अपनी टीकाकरण की योजना बना सकें।
तीसरा, राज्यो को अग्रिम पंक्ति के कामगारों की श्रेणियों को परिभाषित करने के लिए कुछ छूट दी जानी चाहिए, जिन्हें 45 वर्ष से कम आयु के होने पर भी टीका लगाया जा सके। उदाहरण के लिए, राज्य स्कूल शिक्षकों, बस, तिपहिया वाहनों और टैक्सी चालकों, नगरपालिका और पंचायत कर्मचारियों और संभवतः ऐसे वकील जिन्हें अदालतों में हाजिर होना होता है, उन्हें अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों के रुप में नामित कर सके। ऐसे में उन्हें 45 वर्ष से कम आयु का होने पर भी टीका दिया जा सकेगा।
चौथा, पिछले कुछ दशकों में केन्द्र सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों और सशक्त बौद्धिक संपदा संरक्षण के कारण भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक बनकर उभरा है। अधिकतर क्षमता निजी क्षेत्र में है। सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के इस क्षण में, भारत सरकार को निधियां और अन्य रियायतें प्रदान करके अपनी विनिर्माण सुविधाओं का विस्तार करने के लिए वैक्सीन उत्पादकों की निरंतर सक्रिय रुप से सहायता करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त मेरा ये मानना है कि यह कानून में अनिवार्य लाइसेंसिंग प्रावधानों को लागू करने का समय है, ताकि कई कंपनियां लाइसेंस के तहत वैक्सीन का उत्पादन करने में सक्षम हों। मुझे याद है कि एचआईवी / एड्स की बीमारी से निपटने के लिए दवाओं के मामले में ऐसा ही किया गया था। जहां तक कोविड -19 महामारी का संबंध है, मैंने पढ़ा है कि इजरायल ने अनिवार्य लाइसेंसिंग प्रावधानों को पहले ही लागू कर दिया है और भारत के लिए ऐसा तुरंत करने की आवश्यकता है।
पांचवां, चूंकि घरेलू आपूर्ति सीमित है, किसी भी ऐसे वैक्सीन को, जिसे कि यूरोपीय चिकित्सा एजेंसी या यूएसएफडीए जैसे विश्वसनीय प्राधिकारियों द्वारा उपयोग के लिए मंजूरी दे दी गई हो, को घरेलू पूरक परीक्षणों पर जोर दिए बिना आयात करने की अनुमति दी जानी चाहिए। हम एक अभूतपूर्व आपातकाल का सामना कर रहे हैं और मैं समझता हूं तथा विशेषज्ञों का भी यही मानना है कि आपातकाल में यह छूट उचित है। यह छूट सीमित अवधि के लिए हो सकती है, जिसके दौरान भारत में पूरक परीक्षण पूरे किये जा सकते हैं। ऐसे टीकों के सभी उपभोक्ताओं को इस संबंध में सावधान किया जा सकता है कि इन टीकों को विदेश में संबंधित प्राधिकरण द्वारा दी गई मंजूरी के आधार पर उपयोग करने की अनुमति दी जा रही है।
कोविड 19 के खिलाफ हमारी लड़ाई में सफलता की कुंजी टीकाकरण के प्रयास को तेज करना होगा। हमें टीकाकरण करा चुके लोगों की कुल संख्या के आडंबर में न फंस कर, जितने प्रतिशत जनसंख्या का टीकाकरण हुआ है, उस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। वर्तमान में, भारत ने अपनी आबादी के केवल एक छोटे से हिस्से का टीकाकरण किया है। मुझे विश्वास है कि उचित नीति निर्धारण के साथ, हम बहुत बेहतर और बहुत जल्दी यह कार्य सम्पन्न कर सकते हैं।
मुझे उम्मीद है कि सरकार इन सुझावों को तुरंत स्वीकार करेगी और उन पर अविलम्ब कार्रवाई करेगी।