संसद : हंगामा है क्यों बरपा... और शीतकालीन सत्र भी निपटा या निपटा दिया गया
ब्रॉडकॉस्ट मंत्रा ब्यूरो
नई दिल्ली। संसद का शीतकालीन सत्र भी आखिरकार हो-हंगामे के बीच निपट गया। उसी गीत की तरह जिसके बोल हैं, न तुम हारे, न हम जीते। आखिर ऐसा क्यों होता है? संसद में जिरह-चर्चा होती नहीं और बाहर सभी खुद को श्रेष्ठ साबित करने में जुटे रहते हैं। सत्ता पक्ष पर लगे आरोप कि वह मनमाने तरीके से फैसले लेती है और विपक्ष पर हंगामे के आरोप। आखिर कौन सही और कौन गलत। विपक्ष का काम बेशक हंगामा करना है और संसद की कार्यवाही को आगे बढ़ाना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन आखिर जिम्मेदारी कौन निभा रहा है और कौन जिम्मेदारी से भाग रहा है। क्या सरकार भी यही चाहती है कि हंगामा होता रहे और सत्र भी निपट जाये या वाकई सरकार की मंशा हर मुद्दे पर चर्चा कराने की है, लेकिन दिशाहीन विपक्ष ही महज हंगामा करना ही अपना मकसद समझ रहा है। खैर यह तो जनता है, सब जानती है। बुधवार को संसद के दोनों सदनों का सत्र स्थगित कर दिया गया। अब बजट सत्र में ही दोनों सदन फिर से चलेंगे।
राज्यसभा की कार्यवाही तो निर्धारित तिथि से एक दिन पहले ही बुधवार को स्थगित कर दी गई और सभापति एम वेंकैया नायडू ने इस शीतकालीन सत्र के दौरान सदन के कामकाज पर चिंता और अप्रसन्नता जतायी। बुधवार सुबह विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक अखबार की खबर का हवाला देकर अयोध्या से संबंधित एक मुद्दा उठाने की कोशिश की। सभापति ने खड़गे से कहा कि मुद्दे को उठाने के लिए उन्हें नोटिस देना चाहिए था। इसके बाद उन्होंने कहा कि संसद का शीतकालीन सत्र आज पूरा हो रहा है। सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने से पहले अपने पारंपरिक संबोधन में नायडू ने कहा कि सदस्यों से सामूहिक रूप से चिंतन करना चाहिए। नायडू ने कहा, 'सदन का शीतकालीन सत्र आज समाप्त हो रहा है। मुझे आपको यह बताते हुए खुशी नहीं महसूस हो रही कि सदन ने अपनी क्षमता से काफी कम काम किया। मैंने आप सभी से सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से आत्मचिंतन करने का आग्रह किया कि क्या यह सत्र भिन्न और बेहतर हो सकता था। मैं इस सत्र को लेकर विस्तार से नहीं बोलना चाहता।' प्राप्त जानकारी के अनुसार शीतकालीन सत्र की 18 बैठकों के दौरान राज्यसभा की उत्पादकता 47.90 प्रतिशत रही और कुल निर्धारित बैठक समय 95 घंटे छह मिनट में से सदन केवल 45 घंटे 34 मिनट ही कार्य कर सका। सदन में हंगामे, व्यवधानों और स्थगन के कारण कुल 49 घंटे 32 मिनट का समय नष्ट हुआ जो कुल उपलब्ध समय का 52.08 प्रतिशत है। सत्र के दौरान प्रश्नकाल बुरी तरह प्रभावित हुआ और कुल प्रश्नकाल का 60.60 प्रतिशत व्यवधानों के कारण नष्ट हो गया। प्रश्नकाल 18 में से सात बैठकों में शुरू ही नहीं हो सका।
निलंबित सांसदों का धरना भी खत्म
शीतकालीन सत्र में निलंबित किए गए राज्यसभा के 12 सदस्यों ने बुधवार को दोनों सदनों की बैठक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने के बाद संसद परिसर में संविधान की प्रस्तावना पढ़कर और राष्ट्रगान गाकर अपने धरने का समापन किया। इस धरने में तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डेरेक ओब्रायन भी शामिल हुए जिन्हें मंगलवार को राज्यसभा में सदन की नियमावली पुस्तिका सदन में उछालने के कारण सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित किया गया था। गत 29 नवंबर को निलंबन के बाद से 12 सांसद यहां संसद परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष धरना दे रहे थे। उनका कहना था कि जब तक निलंबन रद्द नहीं होगा, तब तक वे संसद की कार्यवाही के दौरान सुबह से शाम तक महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने धरने पर बैठेंगे। सरकार का कहना था कि अगर ये सदस्य अपने कृत्य के लिए माफी मांग लें तो उनके निलंबन पर पुनर्विचार सकता है, हालांकि इन सांसदों ने कहा कि वे माफी नहीं मांगेंगे। गौर हो कि निलंबित सदस्यों में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के इलामारम करीम, कांग्रेस की फूलों देवी नेताम, छाया वर्मा, रिपुन बोरा, राजमणि पटेल, सैयद नासिर हुसैन, अखिलेश प्रताप सिंह, तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन और शांता छेत्री, शिव सेना की प्रियंका चतुर्वेदी और अनिल देसाई तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विनय विस्वम शामिल रहे।
व्यवधान डालना अच्छी बात नहीं : बिड़ला
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने ने कहा कि सदन के कामकाज में व्यवधान डालना अच्छी बात नहीं। संसद के शीतकालीन सत्र के बुधवार को अनिश्चित काल के लिये स्थगित होने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘विपक्ष असहमति दर्ज कराएं लेकिन सदन नहीं चले, यह ठीक नहीं है।' उन्होंने कहा कि पीठासीन सभापतियों के सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी थी कि प्रश्नकाल स्थगित नहीं होना चाहिए। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि संसद में सहमति-असहमति हो, लेकिन यह चर्चा एवं संवाद के जरिये होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सदस्यों के विरोध दर्ज कराने के लिये अगर पहले आसन के समीप आने का कोई चलन रहा भी है, तब भी यह उचित नहीं है। ऐसी परंपरा नहीं होनी चाहिए। बिड़ला ने कहा, ‘यह सत्र 29 नवंबर से शुरू हुआ और इस दौरान कुल 18 बैठकें हुईं जो 83 घंटे 12 मिनट तक चलीं।' उन्होंने कहा कि सभा का कामकाज आशानुरूप नहीं हुआ।