10 साल में 25 हजार ने नशा न मिलने पर दी जान, 50 हजार एचआईवी पीड़ित

जालंधर, 31 अगस्त: पंजाब पिछले दो दशकों से नशाखोरी के कारण गर्त में जा रहा है। गुरुओं की धरती नशा तस्करी का पर्याय बनती जा रहा है। अफीम, भुक्की से शुरू हुआ सिलसिला हेरोइन, स्मैक, कोकीन, सिंथेटिक ड्रग जैसे जानलेवा नशे तक पहुंच चुका है। आंकड़ों के अनुसार पंजाब में 9 लाख लोग ड्रग्स लेते हैं। इसमें 3.5 लाख लोग एडिक्ट हैं। सूबे में नशे से या इससे जनित बीमारी से हर महीने 112 लोगों की मौत हो रही है।
रिसर्च रिपोर्ट ('ड्रग एब्यूज! प्रॉब्लम इज इंटेंस इन पंजाब और चंडीगढ़ पीजीआई व एम्स की संयुक्त रिपोर्ट), 1000 पीड़ित परिवार, नशा मुक्ति केंद्र, ओट सेंटर और मनोचिकित्सकों से बात करने पर पाया कि नशे की वजह से कई घर उजड़ गए। नपुंसकता की वजह से कई घर टूट गए। एक ही सिरिंज से ड्रग लेने की वजह से एचआईवी/एड्स, हेपेटाइटिस-सी जैसी बीमारियां फैल रही हैं। एनसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दस साल में (2007-17) भारत में 25 हजार लोगों ने नशे की पूर्ति न होने के कारण आत्महत्या कर ली इसमें 74% मामले पंजाब के हैं।
कभी भारतीय सेना को सबसे ज्यादा जवान देने वाला पंजाब आज छठे स्थान पर खिसक गया है, क्योंकि यहां के युवा शारीरिक याेग्यता में फेल हो रहे हैं। भास्कर के अभियान का उद्देश्य पंजाब को नशामुक्त कर समृद्ध बनाना है। अंग्रेजों से हमें आजादी तभी मिली थी जब सभी देशवासियों की आंखों ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का ख्वाब देखा। अब हमें नशा त्यागना होगा,तभी पंजाब सशक्त राज्य बन सकेगा। यह तभी संभव होगा, जब हम इस अलख को बुझने न दें...
ड्रग्स से आत्महत्याओं की बात करें तो 2012 में 4000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे। 2013 में इनकी संख्या बढ़कर 4500 हो गई थी। एनसीबी के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 2007 से लेकर 2017 तक दस सालों में ड्रग्स से संबंधित 25,000 से ज्यादा आत्महत्याएं हुई थीं। इसमें 74% मामले पंजाब से हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के मुताबिक 2017 के दौरान पूरे विश्व में नशे की वजह से 2.6 लाख लोगों की मौत हुई थी।
ड्रग्स की लत या शराब की वजह से होने वाली आत्महत्याएं जो थानों में दर्ज होती हैं, एनसीबी उन्हीं के आधार पर आंकड़े तैयार करता है, लेकिन भास्कर ऑडिट में यह भी पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में कई मामले दर्ज ही नहीं पाते। ऐसे भी कई केस पाए गए, जब बदनामी के कारण आत्महत्याओं की वजह मानसिक परेशानी भी बताई जाती है। नशे से होने वाली मौत के 70 प्रतिशत से अधिक मामले पुलिस के पास नहीं पहुंचते हैं।
पंजाब में एसयूवी, बंदूक और ड्रग फैशन हैं। महंगा नशा संपन्नता का जरिया भी बन रहा है। कॉलेजों के स्टूडेंट्स इन मादक पदार्थों के नशे की गिरफ्त में हैं, और इतने आदी हो जाते हैं कि जब इनके पास खरीदने के लिए पैसा नहीं होता। तो वे अपराध की तरफ मुड़ जाते हैं। एक साधारण स्टूडेंट्स से गैंगस्टर बनने का पंजाब का लंबा चौड़ा इतिहास है। विक्की गौंडर इसका प्रमाण था।
शरीर और दिमाग मादक पदार्थ पर निर्भर हो जाता है। नशे के बिना उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता। पूर्ति न होने पर शरीर में दर्द, बेचैनी और तरह-तरह की बीमारियां शुरू हो जाती हैं। लीवर, गुर्दों और दिल पर इन मादक द्रव्यों के प्रयोग का बुरा प्रभाव पड़ता है। एक बार लत लग जाए तो बिना मादक पदार्थों के सेवन के जी नहीं सकते और उनका सेवन मौत की तरफ धकेलता जाता है।
नशाखोरी के कारण सेना में भी पंजाब के युवकों की भागीदारी में कमी आई है। 1947 में सेना में पंजाब के अफसरों की संख्या 50%, एयरफोर्स में 38% और लड़ाकू जांबाज की संख्या 33% होती थी। अब 24% रह गई है। एनडीए हर साल पूरे देश से 2100 जवान देश को देती है। पिछले पांच साल में आईएमए से पंजाब के कुल 167 कैडेट्स पासिंग आउट हुए। पिछले तीन साल में सेना में सीधी भर्ती के लिए प्रदेश से 45000 युवाओं ने आवेदन किया। 90 % युवक शारीरिक योग्यता में फेल हो गए।
पंजाब ने कभी देश में खेलों में राज किया था। ओलंपिक में देश की टीम पंजाब के एथलीटों पर निर्भर रहती थी। लॉन्ग जंपर बलबीर सिंह, ट्रिपल जंपर मोहिंदर सिंह, स्प्रिंटर मिल्खा सिंह, हाई जंपर गुरबचन सिंह रंधवा जैसे एथलीटों को कौन भूल सकता है। 1968 मैक्सिको ओलंपिक में भेजे गए 25 सदस्यीय दल में 13 पंजाब से थे। कॉमनवेल्थ गेम्स 2014 में पंजाब ने नौ पदक जीते थे, 2018 में यह संख्या तीन रह गई। इस बार प्रदीप, विकास व नवजोत कौर ने सिल्वर व दो ब्रॉन्ज जीत कर प्रदेश की साख बचाई।
पंजाब से हर साल 45 हजार स्टूडेंट्स शिक्षा के लिए विदेश जा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह यह है कि अधिकांशत: अभिभावकों को लगता है कि उनके बच्चेयहां रहे तो ड्रग का शिकार हो सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में हर तीसरा मेल और हर 10वीं फिमेल स्टूडेंट ड्रगलेते हैं। इसमें 15% अफीम और 20% भुक्की के आदी हैं। स्कूल ड्रॉपआउट एक गंभीर समस्या है। एनुअल ड्रॉप आउट रेट 2014-15 1.3 % से 2016-17 में 3.3 % हो गई है। कुशल कामगार घट रहे हैं।
जालंधर के सिविल अस्पताल में डी एडिक्शन सेंटर में मनोचिकित्सक संजय खन्ना के अनुसार युवा कई कारणों से एडिक्ट बन रहे हैं। भास्कर पड़ताल के अनुसार 44% ने पहली बार दोस्तों के दबाव में ड्रग ट्राई किया। एक ही सिरिंज से ड्रग लेने से एचआईवी/हेपेटाइटिस के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। प्रदेश में इस समय 50 हजार हेपेटाइटिस सी के मरीज हैं। पंजाब में एचआईवी के मरीजों की संख्या में 5 साल में 30% तक बढ़ी है। सूबे में हर महीने नशे अथवा इससे जनित बीमारी से मरने वालों की संख्या 112 दर्ज की गई है।