पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन और भारत-पाक संबंध

डॉ सुधीर सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय
जुलाई, 2018 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए। तमाम धांधली के आरोपों के बीच इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसापफ (पी.टी.आई.) नेशनल असेम्बली में 115 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी, जो साधारण बहुमत से 22 कम है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ शरीपफ की पार्टी ने 64 सीटों के साथ दूसरे और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी 43 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान छोटी पार्टियों के संयोग से प्रधानमंत्री की गद्दी संभाल चुके हैं। 2008 के मार्च में हुए चुनावों में बेनजीर भुट्टो की पी.पी.पी. ने सत्ता प्राप्त की थी। मई 2013 में हुए चुनावों में जीतकर पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नेता नवाज शरीपफ तीसरी बार प्रधानमंत्री बने। इस तरह 2008 के बाद यह तीसरा आम चुनाव है। प्रजातंत्र को संघर्ष करते पाकिस्तान के लिए तीन लगातार आम चुनाव, वह भी समय पर अपने आप में एक संतोषप्रद आनंद है। वैसे 1972 के आम चुनावों से लेकर अभी तक पाकिस्तान में कोई भी प्रधानमंत्री अपने पाँच वर्ष के कार्यकाल को पूरा नहीं कर पाया है।
आखिर कोई भी जनता के द्वारा चुना हुआ प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल अभी तक पूरा क्यों नहीं कर पाया है? इस सवाल के जवाब में ही इसका दूसरा भी जवाब शामिल है कि आखिर एक पड़ोसी देश होते हुए भी भारत-पाक के बीच के संबंध बंटवारे के 71 वर्षों बाद भी सामान्य क्यों नहीं हो पाये हैं। 2008 से 2013 तक बेनजीर भुट्टो की पी.पी.पी. का शासन था। 2008 से2013 तक इस कालखण्ड में श्री युसुपफ रजा गिलानी प्रधानमंत्री थे। 2012 में उन्होंने एक बार कहा था ‘‘पाकिस्तानी सेना पाकिस्तानी राज्य के अंदर नहीं है बल्कि पाकिस्तानी राज्य ही पाकिस्तानी सेना के अंदर है‘‘। इस वक्तव्य में ही भारत-पाक संबंधों पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। पाकिस्तान के सेना प्रतिष्ठान में सेना काफी महत्त्वपूर्ण है और सेना के इशारे के बगैर कोई भी चुनी हुई सरकार कश्मीर नीति, परमाणु एवं अफगानिस्तान नीति नहीं बना सकती। अगस्त1988 में एक विमान दुर्घटना में उस समय के समय सैनिक तानाशाह रहे जनरल जिया उल हक की मौत हो गई। इसके फलस्वरूप चुनाव हुए और बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व में पी.पी.पी. की सरकार बनी। बेनजीर भुट्टो से उस समय के सेनाध्यक्ष जनरल असलम बेग ने यह आश्वासन लिया कि कश्मीर, परमाणु एवं अफगान मामलों पर उनकी सरकार सेना को बेरोकटोक नीतियाँ बनाने देगी। बेनजीर इस पर तैयार हुईं, तभी उनको प्रधानमंत्री बनाया गया। तब से आज तक सेना किसी भी निर्वाचित सरकार को इन मुद्दों पर हस्तक्षेप नहीं करने देती। अगर कोई करने भी देता है तो उसे बनावटी आधर पर सत्ताच्युत कर देती है। पाकिस्तान की सेना भारत के साथ अच्छे संबंध नहीं चाहती। सेना भारत का मनोवैज्ञानिक डर दिखाकर सत्ता पर अपना वर्चस्व पिछले 71 वर्षों से लगातार बनाए हुए है। सेना मानती है कि अगर भारत-पाक संबंध सुधर जायेंगे तो उसके वर्चस्व का क्या होगा? सेना के नियंत्रण से लगभग एक तिहाई बजट रक्षा पर खर्च होता है, जिससे जन-कल्याण के क्षेत्र में नाममात्र का ही बजट आवंटन हो पाता है। इससे पाकिस्तान में गरीबों की गरीबी और बढ़ी है।
हकीकत यह है कि भारत-पाक संबंध सामान्य होने से व्यापार बढ़ेगा और इससे पाकिस्तान को अपनी भौगोलिक स्थिति का भी भरपूर फायदा मिल सकता है। इससे पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति जो बराबर ही उस पर बोझ बनी हुयी है, में आमूल चूल परिवर्तन हो सकता है। पर इन हकीकतों से सेना जान-बूझकर भी अनजान बनी रहती है। भारत के 1996 में सार्क के प्रावधनों के तहत पाकिस्तान को व्यापार में तरजीही देश का दर्जा दिया, जो आज तक पाकिस्तान ने बदले में भारत को नहीं दिया है। विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के अनुसार पाकिस्तान को ऐसा करना चाहिए था। फरवरी 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी लाहौर दौरे पर गये लेकिन शांति के बजाय इसके बदले में कारगिल मिला। दिसम्बर 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अचानक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर शादी में शरीेक होने पहुचे लेकिन कुछ ही दिनों में पठानकोट में आतंकी हमले से इसका जवाब दिया गया।
नये प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने प्रारंभिक भाषण में कहा है कि वह भारत के साथ संबंधों को सुधारने के लिए उत्सुक है और भारत के एक-कदम का दो कदम से जवाब देंगे। विदेश मंत्री भाट मौहम्मद कुरैशी ने भी इसी तरह का बयान दिया है। अब सवाल उठता है कि इस स्थिति में भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को चाहिए कि वह वार्ता के दौरों को नहीं रोके पर इसका सख्त ख्याल रखे कि वार्ता अधिकारी स्तर तक ही सीमित रखे। विदेश मंत्री या प्रधामंत्री स्तर पर अभी वार्ता से संबंध सुधरने के बजाय और बिगड़ जायेंगे। सेना संबंध सुधारना नहीं चाहती तो कोई भी निर्वाचित प्रधानमंत्री सेना को अपने नक्शे कदम पर नहीं चला सकता।
दक्षिण एशिया में शांति इस पूरे प्रायद्वीप में गरीबी उन्मूलन के लिए आवश्यक है। सार्क भी भारत-पाक असमान्य संबंधों से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इस पूरे परिदृश्य को मद्देनजर रखते हुए भारत को चाहिए कि निचले स्तर पर पाकिस्तान से वार्ता जारी रखे। भारत-पाक संबंध को अच्छा होना भारत के हित में भी है। लेकिन खतरा यह है कि अगर हम ऊँचे स्तर पर प्रयास करेंगे तो यह खराब ही नहीं होगा बल्कि पहले से भी उतर जायेगा।
भारत को धीरे-धीरे लेकिन अनवरत रूप से इमरान खान के न्यौते को स्वीकार करते हुए निचले स्तर पर वार्ता के माध्यम से बर्फ पिघलाने का गंभीर प्रयास करना चाहिए।
डॉ सुधीर सिंह
दिल्ली विश्वविद्यालय
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