मनमोहन सिंह ने कहा सैन्य बलों को धार्मिक अपीलों से खुद को अछूता रखने की जरुरत

नई दिल्ली, 26 सितम्बर: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को कहा कि भारतीय सशस्त्र बल देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का अभिन्न हिस्सा है। इसलिए सैन्य बलों को धार्मिक अपीलों से खुद को अछूता रखने की जरुरत है। बाबरी मस्जिद विध्वंस घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने 6 दिसंबर 1992 का दिन धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के लिए दुखदायी बताया।
मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य के चलते न्यायपालिका की भूमिका अहम
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भाकपा के पूर्व महासचिव एबी वर्धन की स्मृति व्याखान में पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा- संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना की रक्षा के लिए यह बेहद जरूरी है कि न्यायपालिका अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी को नजरंदाज न करे।
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मनमोहन सिंह ने कहा- मौजूदा राजनीतिक विवादों और बढ़ती हईं चुनावी रंजिशों के चलते न्यायपालिका की भूमिका और भी बढ़ गई है। न्यायपालिका को संविधान संरक्षक की भूमिका में खुद की स्थापित परंपरा को बनाए रखने की जरूरत है।
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उन्होंने कहा- गैरजिम्मेदाराना और स्वार्थी राजनीतिक जो हमारी राजनीति में सांप्रदायिक रंग घोल रहे हैं, उससे भी बचना होगा। आज राजनीतिक भेदभावों के चलते समाज में धर्मिक तत्वों, प्रतीकों, मिथकों और पूर्वाग्रहों की मौजूदगी भी काफी अधिक बढ़ गई है।
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पूर्व प्रधानमंत्री ने यूपीए सरकार का जिक्र करते हुए कहा कि हमारे कार्यकाल में सभी समाजों, धार्मिक अल्पसंख्यकों का ख्याल रखा गया। तत्कालीन सरकार ने धर्मनिरपेक्षता को महत्व दिया।
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मनमोहन सिंह ने कहा - पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी की लड़ाई में कहा था कि वह किसी भी रूप में साम्प्रदायिकता को पसंद नहीं करते। कोई भी बहुसंख्यक समाज अल्पसंख्यकों का दमन नहीं कर सकता।
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उन्होंने कहा, "नेहरू नए भारत का धर्मनिरपेक्ष स्वरुप चाहते थे। उन्होंने 29 सितम्बर 1947 को कहा था कि जब तक वह देश की बागडोर संभालेंगे भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बनेगा।"
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6 दिसंबर 1992 का दिन धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के लिए दुखदायी
पूर्व प्रधानमंत्री ने बाबरी मस्जिद का जिक्र करते हुए कहा- 1990 के दशक के शुरुआती दौर में ही राजनीतिक दलों के बीच बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों के अस्तित्व को लेकर झगड़ा काफी बढ़ गया था। इसका अंत सुप्रीमकोर्ट में हुआ।
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उन्होंने कहा- 6 दिसंबर 1992 का दिन हमारे धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के लिये दुखदायी दिन था और इससे हमारी धर्मनिरपेक्षता को आघात पहुंचा। सुप्रीमकोर्ट ने एस आर बोम्मई मामले में धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मौलिक स्वरूप का हिस्सा बताया।