भिक्षावृति एक कलंक

23 December, 2018, 10:30 pm

लेखिका- संजो रानी, शिक्षिका (धनपतमल विरमानी सीनियर सेकेंडरी स्कूल)

‘वृत्ति’ शब्द का प्रयोग स्वभाव और आजीविका दोनों अर्थों में किया जाता है। भिक्षावृति के संदर्भ में इसका अर्थ भिक्षा द्वारा अपना भरण-पोषण करने से है।भिक्षावृत्ति देश पर कलंक के समान है, इससे व्यक्ति का आत्मगौरव नष्ट होता है। अक्सर देखा जाता है कि लोग भिखारियों पर दया भाव दिखा कर उन्हें कपड़े और खाने की सामग्रियां देते हैं। परन्तु आधुनिक युग के भिखारी इन चीज़ों को लेने से इंकार करते हैं, क्योंकि उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा बटोरना होता है।

                           

प्राचीन काल में जब आश्रम व्यवस्था अपने उत्कर्ष पर थी, तब गृहस्थ जनों पर ही शेष तीन आश्रमों(ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और सन्यास) के पालन पोषण का भार था। परन्तु प्राचीन समय में भिक्षा वृत्ति को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा गया। मांगने को मरण समान बताकर कबीर जी ने अपने दोहे में कहा कि-“मर जाऊं मांगू नहीं, अपने तन के काज”।

2011 की जनगणना के अनुसार देश में 3,72,000 भिखारी थे, जिनमें से 21 फ़ीसदी यानी 78,000 भिखारी शिक्षित थे, परन्तु परिस्थिति वश ऐसे लोगों को भीख मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा। कुछ लोग तो ठीक-ठाक अवस्था में होने के बावजूद भीख मांगते हैं। भीख मांगने के लिए वह लोग तरह-तरह के स्वांग रचते हैं, कुछ पुरुष किन्नर रूप या किन्नर वेश बनाकर चौराहों पर भीख मांगते नज़र आते हैं, कुछ अंधे बनकर, तो कुछ लंगड़े बनकर। इससे हमारे देश में भिक्षावृत्ति की समस्या दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही है।

भिक्षावृत्ति देश पर कलंक के समान है, इससे व्यक्ति का आत्मगौरव नष्ट होता है। अक्सर देखा जाता है कि लोग भिखारियों पर दया भाव दिखा कर उन्हें कपड़े और खाने की सामग्रियां देते हैं। परन्तु आधुनिक युग के भिखारी इन चीज़ों को लेने से इंकार करते हैं, क्योंकि उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा बटोरना होता है।

भिक्षावृत्ति में बच्चों की संख्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, देश के विभिन्न हिस्सों में तकरीबन 2 लाख से ज्यादा बच्चे भिक्षावृत्ति से जुड़े हैं। कोई परंपरागत रूप से भिक्षावृत्ति कर रहा है तो बड़ी संख्या में बच्चे संगठित गिरोह का शिकार होकर जो उन्हें डरा धमकाकर या अंग-भंग करके उनसे जबरन भिक्षावृत्ति करवाते हैं। बच्चों से भिक्षावृत्ति करवाने की समस्या पर अंकुश लगाने के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग(N.C.P.C.R) ने राजधानी दिल्ली से एक देशव्यापी मुहीम शुरू करने जा रहा है। इसमें संशोधित क़ानून की धारा 76 के तहत बाल भिक्षावृत्ति के लिए दोषी पाए गये व्यक्ति को पांच साल की कैद और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा भुगतनी पड़ सकती है। बच्चों का अंग-भंग कर भीख मंगवाने की सजा सात से दस साल की कैद और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है। दिल्ली हाई कोर्ट ने 8 अगस्त, 2018 को राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और जज सी. हरि शंकर की एक पीठ ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है, जहां सरकार भोजन या नौकरियां प्रदान करने में असर्मथ है।

 अदालत ने कहा कि इस मामले के सामाजिक और आर्थिक पहलु पर अनुभव आधारित विचार रखने के बाद दिल्ली सरकार भीख के लिए मजबूर करने वाले गिरोहों पर काबू के लिए वैकल्पिक क़ानून लाने के लिए स्वतंत्र है।

 हर्ष मंदर और कर्णिका साहनी की जनहित याचिकाओं में राष्ट्रीय राजधानी में भिखारियों के लिए मूलभूत मानवीय और मौलिक अधिकार मुहैया कराये जाने का अनुरोध किया गया था।

मेरा मानना तो यह है कि आपराधिक भिक्षावृत्ति को रोकना सिर्फ सरकार प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं बल्कि हमें भी भिक्षावृत्ति को बढ़ावा देने के बजाय उसे रोकना होगा.