दिल्ली में सीलिंग का कहर , जिम्मेदार कौन?

12 June, 2018, 12:56 pm

इन रास्तों से पहुंचे सीलिंग तक  | सुशील कुमार सिंह वरिष्ट पत्रकार 

दिल्ली आने वाली ट्रेनों से रोजाना कई सौ ऐसे लोग उतरते हैं जिन्हें वापस नहीं जाना है। वे यहां पहले से मौजूद अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार के पास ठहरते हैं, कुछ दिनों में कोई काम पकड़ लेते हैं और दिल्ली वाले बन जाते हैं। ऐसा बरसों से हो रहा है। दिल्ली में झुग्गियों व अवैध कालोनियों की संख्या बढ़ती जा रही है जो बाद में नियमित हो जाती हैं। 

  देश में असमान विकास का खामियाज़ा गांवों-कस्बों को ही नहीं, हमारे महानगरों को भी झेलना पड़ा है। रोजगार के लिए लोग आज भी बड़े शहरों की तरफ भाग रहे हैं। आजादी के बाद दिल्ली इसका सबसे बड़ा शिकार बनी। इसी का नतीजा है कि लगभग दो-तिहाई दिल्ली अनियोजित तरीके से बनी। मानवीय समस्या कह कर राजनीतिकों ने उसे पास करा दिया, मगर वास्तव में यह वोट का मामला था। 

  यह मानवीय यानी वोट का मामला ही है जिसके चलते शहर के फुटपाथ खाली नहीं हैं औरअनेक रिहायशी कालोनियां बाजारों में बदल चुकी हैं। जहां जिसका वश चला उसने मकान या दुकान आगे बढ़ा ली। यह सब राजनीतिकों और एमसीडी या डीडीए या पुलिस के अधिकारियों की जानकारी बल्कि मिलीभगत से हुआ। वे शायद मान कर चलते हैं कि आखिरकार सरकार इन्हें मंजूरी दे ही देगी। इस तरह अवैध निर्माण और अतिक्रमण इन सबके लिए अवैध कमाई का स्थायी जरिया बन गए। 

इसीलिए एक सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि अवैध कॉलोनियों नें सात-सात मंजिलें कैसे बन गईं? अगर नियमित कॉलोनियों में बिल्डिंग बाईलॉज हैं तो अवैध कालोनियों में क्यों नहीं है? अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि आप अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित कर रहे हैं,मतलब यह कि आप अवैध काम को बढ़ावा दे रहे हैं।उसने अधिकारियों से कहा कि हलफनामा दीजिए कि आप कानून के विरुद्ध काम कर रहे हैं। 

जब आप किसी संपत्ति को रिहायशी से कमर्शियल में बदलते हैं तो सरकार एक शुल्क लेती है। किसी ने यह चार्ज नहीं दिया है तो वह सीलिंग के दायरे में आएगा। सरकारी जमीन घेरकर निर्माण करने,निर्धारित से ज्यादा मंजिलें बनवा लेने अथवा सड़क पर अतिक्रमण की हालत में सीलिंग की कार्रवाई की जा सकती है।पहले कई बार ऐसी समस्याओं से मास्टर प्लान में संशोधन करके निजात पाई जाती रही है। लेकिन इस बार जब डीडीए ने मास्टर प्लान 2021 में संशोधन की अनुमति मांगी तो सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। 

  इससे समस्या इस बार ज्यादा गंभीर हो गई। अब तीन ही रास्ते हैं। या तो सीलिंग हो या सुप्रीम कोर्ट कुछ रियायत बरते या संसद एक बार फिर कोई संशोधन पास कर दे। इसमें देरी की एक वजह यह भी हो सकती है कि दिल्ली और केंद्र में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें हैं।