हज़ारों शहादतों से परवान किताब, जंगे-आजादी की पहली लड़ाई और राव तुलाराम





कृष्ण स्वरूप गोरखपुरिया कहते हैं कि आज से बारह साल पहले 2007 मे हम लोगो ने एक देशभक्त यादगार कमेटी का गठन करके पूरे प्रदेश मे 1857 के 150 साल और शहीद भगत सिंह का 100 साल मनाने के लिए एक अभियान चलाया था । 1857 का बहुत बड़ा केंद्र रहा है रानियां का इलाका वहाँ मुझे एक स्कूल मे बोलने के लिए बुलाया गया था ।मैं वहाँ गया । मैंने एक सवाल किया ? क्या आप मे से कोई ये नाम बता सकता है कि आपके पड़ोस के रानियां का नवाब 1857 में सबसे पहला शासक था जिसको फासी कि सज़ा दी गई थी । ये जानकारी किसी को नही थी । उसका नाम क्या था दूसरा सवाल मैंने ये किया क्या आपमे से कोई ये बताएंगा कि भगत सिंह को कुल सज़ा कितनी हुई ? एक भी आदमी ऐसा नहीं था जो ये बता दे कि भगत सिंह को 716 दिन के लिए सज़ा हुई थी। मुझे इस बात का बड़ा अफसोस हुआ जो लोग अपने देश के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर के चले गए उन लोगो का कोई जानकार ही नहीं है और वहाँ बहुत लोग ऐसे थे जिनको इस बात कि जानकारी थी कि फिल्म अभिनेता संजय दत्त को टाड़ा मे 5 साल कि सज़ा हुई है ।
तब मैने विचार किया कि देश पर अपनी जान न्यौछावर करने वाले शहीदों के बारे में जानकारी जन-जन तक पहुंचनी चाहिए । मैने स्वयं आज से 50 साल पहले कई बार तिहाड़ जेल काटी है ।तब मैं छात्र आंदोलन में अगवा बना था । आपको बताना चाहता हूं कि हरियाणा के एक बहुत बड़े देश भक्त थे पतराम जी वर्मा ,उन्होने अपनी किताब मे लिखा है कि जो देश अपने शहीदों को देशभक्तों को और स्वाधीनता सेनानियो को भूल जाता हैं वो देश लंबे समय तक आजादी कि रक्षा नहीं कर सकता । तभी मैंने विचार किया कि इसके लिए कुछ किया जाए और वर्ष 1973 मे मेरी एम.ए की पढ़ाई छात्र आंदोलन की वजह से छूट गई थी । लेकिन 40 साल बाद मैंने एम.ए. किया इतिहास में इंग्लिश मीडियम से ।
सबसे बड़ी बात तो ये है कि 1857 आयरलेंड के जॉर्ज थॉमस ने एक हुकूमत कायम कर ली थी यहाँ मेरे बुजर्गों ने उसके खिलाफ बगावत की थी । पूरे गाँव का कत्लेआम हो गया था । हमारी रगों मे देशभक्ति का खून रहा है।
जो लोग देशभक्त थे उन्होने एक खास मकसद के लिए कुर्बानियां दी थी । हमे ये बात नहीं भुलनी चाहिए की हमारे देश में 10 मई मे बगावत हुई मेरठ के फोजियों ने बगावत कर दी थी । उससे पहले मंगल पांडे को फांसी दे दी गई थी । श्री गोरखपुरिया उस वाकये को याद करते हुए कहते है कि बगावत करने के बाद वो फौज़ी कहाँ गए? सुबह- सुबह लाल किले मे पेश हुए और बहादुर शाह जफर से उन्होंने गुजारिश की आप हमारी बगावत का नेतृत्व करो ,उन्होने पहले तो इंकार किया की मेरी उम्र नहीं है । हालत नहीं है लेकिन फिर बहादुर शाह जफर ने उनकी गुज़ारिश को स्वीकार कर लिया और समय आने पर बहादुर शाह जफर ने गर्दन झुकाने के बजाय लड़ने का फैसला लिया । यहाँ हिन्दू और मुसलमान की जो शहादत हैं । हमारा ये मानना है की हमारी सांझी शहादत और सांझी विरासत इसकी रक्षा की जानी चाहिए । इसलिए हरियाणा का विशेष तौर पर योगदान रहा है
1857 के बारे मे बहुत कुछ लिखा गया उसके बावजूद हरियाणा को पहली जंगे –आजादी में बहुत कम स्थान दिया गया । पूरे देश के 600 राजाओं ने बगावत मे हिस्सा लिया था । जिसमे हरियाणा के लोगो की काफी तादाद थी । हरियाणा के भा करीब 30 हजार से अधिक लोग शहीद हुए थे । 16 नवम्बर 1857 मे राव तुलाराम के नेतृत्व में 5 हजार बहादुर लोग लड़े ।
कृष्ण स्वरूप गोरखपुरिया ने करीब 200 लेख लिखे है । ये लेख राष्टीय समाचार पत्रों में छपे है । 50 वर्ष पहले उनके विद्यार्थी जीवन मे उन्होने तिहाड़ जेल की यात्रा की थी। आपातकाल के समय में पुलिस उन्हे गिरफ्तार नहीं कर पाई लेकिन उनके पिताजी को पुलिस ने काफी परेशान किया । उन्होने बताया की 1857 मे भारत के बहुत से राजा अंग्रेज़ो के साथ थे राव तुलाराम ने काफी प्रयास किया उन्होंने उन राजाओ से मुलाक़ात की उन्हें समझाया की ये देश को आज़ाद कराने का सवाल है अंग्रेज़ो के टुकड़े खाने का सवाल नहीं है । लेकिन कई राजा नहीं माने 16 नवम्बर 1857 की लड़ाई हारने के बाद भी उन्होंने रानी झासी और तांत्या टोपे के साथ संपर्क किया और वे दिल्ली की तरफ बढ़े तांत्या टोपे को गिरफ्तार कर लिया गया उन्हे फांसी की सज़ा दे दी गई । फिर राव तुलाराम अफगानिस्तान चले गए और उनका 38 साल की उम्र मे देहांत हो गया ।