कैट ने केन्द्र सरकार से ई कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की मांग की

नई दिल्ली, 1 सितंबर।केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल से कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट ) ने आग्रह किया है कि चूंकि ई-कॉमर्स देश में व्यापार का एक आशाजनक भविष्य है, लेकिन ई कॉमर्स कंपनियों द्वारा अपनाई जा रही कुछ विकृतियों के कारण ई कॉमर्स व्यापार बुरी तरह विषाक्त हो गया है जिसको समाप्त करने के लिए तत्काल कदम उठाने जरूरी है जिससे ई कॉमर्स बाजार को निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के साथ एक समान स्तर का व्यापारिक वातावरण मिल सके। कैट ने कहा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल अभियान को मूर्त रूप देने के लिए कैट ने देश के 7 करोड़ व्यापारियों को डिजिटल बनाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया है और सभी व्यापारियों को ऑनलाइन व्यापार पर लाया जाएगा लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों और घरेलू कंपनियों के नियंत्रण और प्रभुत्व के इरादे पर लगाम लगाई जानी बहुत जरूरी है !
कैट ने पत्र में सुझाव दिया कि ई वाणिज्य नीति को एक मजबूत नीति बनाई जानी चाहिए ताकि देश में ई वाणिज्य बाजार कुछ प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियों का बंधक न बन जाए । उन्होंने श्री गोयल से ई-कॉमर्स नीति में कुछ अनिवार्य प्रावधान शामिल करने का आग्रह किया है, जिसमें डीपीआईआईटी के साथ बड़ी या छोटी ई-कॉमर्स कंपनियों का पंजीकरण अनिवार्य हो । चूंकि प्रधान मंत्री डिजिटल भुगतानों को अपनाने पर अधिक जोर दे रहे हैं, इसलिए ई-कॉमर्स में कैश ऑन डिलीवरी (सीओडी) प्रणाली को समाप्त किया जाना चाहिए और सभी भुगतान डिजिटल भुगतान से होने चाहिए। नियमों और विनियमों के उल्लंघन से निपटने के लिए एक "ई कॉमर्स लोकपाल" का गठन किया जाना चाहिए। नियमों और विनियमों के उल्लंघन के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। चूंकि डेटा एक महत्वपूर्ण तत्व है, इसलिए डेटा का कोई दुरुपयोग नहीं करने के लिए पर्याप्त प्रावधान शामिल किए जाने चाहिए। एक संयुक्त समिति जिसमें वरिष्ठ अधिकारी, व्यापारी संगठन और ई वाणिज्य कंपनियों के प्रतिनिधियों को शामिल कर गठन करना चाहिए जो संवादों के माध्यम से ई-कॉमर्स में व्यापार को सुचारू रूप से चलाने के लिए उपायों की देख रेख करे !
उन्होंने आगे कहा कि सरकार की वर्तमान नीति के तहत ऑनलाइन खुदरा विक्रेता केवल बी 2 बी मॉडल का खुदरा व्यापार कर सकते हैं और बी 2 सी मॉडल के लिए वे बाज़ार मॉडल का कड़ाई से पालन करने के लिए बाध्य हैं और इसलिए उनके व्यापार मॉडल में निश्चित रूप से कुछ बुनियादी बातों का पालन करना चाहिए। पालिसी के अनुसार प्रौद्योगिकी प्रदाता केवल एक ई-मार्केटप्लेस प्लेटफॉर्म प्रदान करेगा। ऐसे ई-मार्केटप्लेस के साथ पंजीकृत विक्रेता ई-मार्केट प्लेटफॉर्म पर अपना सामान प्रदर्शित करेंगे और किसी भी बाहरी हस्तक्षेप के बिना बिक्री के सौदे को कर सकते हैं। प्रौद्योगिकी प्रदाता को सफल लेनदेन के लिए कमीशन मिलेगा। लॉजिस्टिक कंपनियाँ भी आर्डर की डोर डिलीवरी करके राजस्व अर्जित करेंगी। प्रौद्योगिकी प्रदाता और विक्रेता संबंधित कानून, अधिनियम, नियम और विनियमों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
कैट का कहना हैं कि बाज़ार के मॉडल के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए ऑनलाइन खुदरा कंपनियां खुले रूप से उपभोक्ताओं को माल बेच रही हैं जो सरकार की नीति का स्पष्ट उल्लंघन है। ऑनलाइन रिटेल पोर्टल्स पर वस्तुओं की काफी काम कीमत ने कई सवालों को जन्म दिया है? यदि ये ऑनलाइन रिटेलर्स बाज़ार के अलावा कुछ नहीं हैं तो वे किसी भी तरह की सेल कैसे लगा सकते हैं क्योंकि वे इन्वेंट्री के मालिक नहीं हैं? इन्वेंट्री का अधिकार ऐसे पोर्टल्स पर पंजीकृत विक्रेताओं के पास है। क्या किसी भी सेल या डिस्काउंट के लिए ई कॉमर्स कंपनियों ने अपने साथ पंजीकृत सभी विक्रेताओं की लिखित सहमति ली है? ई-कॉमर्स कंपनियां ऑफ लाइन दुकानों की तुलना में बहुत सस्ते सामानों की ब्रांड और गुणवत्ता को कैसे बेच पाती हैं। कई मामलों में ऑनलाइन रिटेलर का विक्रय मूल्य ऑफ़लाइन बाजार के थोक मूल्य से काफी सस्ता है। ये सभी महत्वपूर्ण सवाल हैं जिनका जवाब ई कॉमर्स कंपनियों से माँगा जाना चाहिए !
दोनों व्यापारी नेताओं नेताओं ने कहा कि ऑनलाइन पोर्टल्स पर पंजीकृत विक्रेताओं को बहुत सस्ती दर पर सामान बेचने से होने वाले नुकसान की भरपाई मार्केटप्लेस टेक्नोलॉजी के मालिक कंपनी द्वारा की जा रही है, या विशेष ब्रांड की निर्माता कंपनियां ऑनलाइन पोर्टल के लिए सामान ऑफलाइन बाजार से अलग मूल्य पर देती है, जिसके तहत उत्पाद हैं उन्हें ऑफ़लाइन बाजार की तुलना में बहुत कम कीमत पर दिया गया है, या कुछ इकाई अपने स्वयं के विभिन्न कारणों से पर्दे के पीछे रहकर इस तरह के नुक्सान की भरपाई कर रही है या इसमें उत्पादों की अधिक आमद है जो कि ग्रे बाजार से आते हैं । उन्होंने कहा की मल्टी-ब्रांड रिटेल में एफडीआई के लिए पैरवी करने वाले कॉरपोरेट निवेशकों का समूह और भारत के खुदरा व्यापार में प्रवेश करने में नाकाम रहने के बाद, यह वही ताकतें लगती हैं जो ई रिटेल क्षेत्र में काम कर रही हैं !